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वेदविरुद्धमतखण्डनम्
Ved-viruddh-mat-khandanam
By : Swami Dayanand Saraswati In : Hindiइस ग्रन्थ में वल्लभ मत का खण्डन किया गया है। इस पुस्तक का दूसरा नाम 'वल्लभाचार्य मत खण्डन' भी है। इस मत में वल्लभ नामक पुरुष को गुरु मानकर उनके ग्रन्थों के आधार पर आचरण किया जाता था। यह मत पूर्णत: वेदविरुद्ध सिद्धान्तों का प्रतिपादक था। वल्लभ जो मृत हो चुके हैं, उनका आचार्य होना सम्भव ही नहीं, क्योंकि जो शिष्य को कल्पसूत्र, वेदान्त सहित वेद पढ़ावे वही आचार्य हो सकता है और मरणोपरान्त पढ़ाना सम्भव नहीं। दूसरा, इस मत में श्रीकृष्ण को भगवान माना गया है, जो कि असत्य है। इसी प्रकार की पाखण्ड युक्त बातें इस मत में फैलाई गई थीं। इस मत के सभी सिद्धान्तों व ग्रन्थों को लेकर उनमें से प्रश्न उठाकर उनका खण्डन किया। 'सिद्धान्त रहस्य', 'शुद्धाद्वैतमार्तण्ड', 'सत्सिद्धान्तमार्तण्ड', 'विद्वन्मण्डन', 'अणु भाष्य' 'रस भावना', आदि ग्रन्थ इस मत के माने जाते हैं। यह खण्डनात्मक ग्रन्थ गुजराती, हिन्दी और संस्कृत तीनों भाषाओं में है। संस्कृत से हिन्दी में अनुवाद महर्षि के शिष्य भीमसेन शर्मा जी ने और गुजराती में अनुवाद महर्षि के प्रमुख शिष्य श्याम जी कृष्ण वर्मा ने किया। पहले तो स्वामी जी ने वल्लभमत के सभी सिद्धान्तों का वेद एवं युक्तियों के आधार पर विस्तार से खण्डन किया है। अन्त में उन्होंने लिखा है कि जैसे वेद और युक्ति से विरुद्ध वल्लभ का सम्प्रदाय है, वैसे ही शैव, शाक्त, गाणपत्य, सौर और वैष्णवादि सम्प्रदाय भी वेद
और युक्ति से विरुद्ध ही हैं। इस कथन से वेद के विरुद्ध सभी मतों व सम्प्रदायों का स्वतः खण्डन हो जाता है।
इसकी रचना संवत् १९३१, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या. मंगलवार के दिन पूर्ण हो गई थी। महर्षि के जीवनचरित्र को पढ़ने से पता चलता है कि इस पुस्तक के जबरदस्त प्रभाव के कारण वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायियों ने अनेक बार महर्षि के प्राण हरण का प्रयत्न किया।
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Title : वेदविरुद्धमतखण्डनम्
Sub Title : N/A
Series Title : दयानन्द ग्रन्थमाला
Language : Hindi
Category :
Subject : वेद
Author 1 : स्वामी दयानन्द सरस्वती
Author 2 : N/A
Translator : N/A
Editor : N/A
Commentator : N/A
Publisher : Vedic Pustakalay
Edition : 4th
Publish Year : 2016
Publish City : Ajmer
ISBN # : N/A
http://www.vediclibrary.in/book/ved-viruddh-mat-khandanam