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जन्म-चरित्र (स्वामी दयानन्द सरस्वती)

Janma-charitra (Swami Dayanand Sarswati)

By : Swami Dayanand Saraswati In : Hindi

भारतीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के सूत्रधार स्वामी दयानन्द सरस्वती अपने युग के अद्वितीय महापुरुष थे। उनके विचारों का प्रभाव उनके जीवन काल में केवल स्वदेश तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु इंगलैण्ड, जर्मनी तथा अमेरिका तक उनकी ख्याति का प्रसार हुआ। ऐसे युग-प्रवर्तक महापुरुष का जीवन निश्चय ही समग्र मानव जाति के लिये प्रेरणादायी सिद्ध हो सकता है, यह अनुभव कर स्वामी जी के जीवन-काल में ही उनके जीवन-वृत्त को लेखबद्ध करने का प्रयास किया गया था। स्वामी जी ने स्वयं भी अपने एक व्याख्यान में आत्मकथन के रूप में स्वजीवनवृत्त की कुछ चर्चा की थी। चैत्र शुक्ला पञ्चमी' १९३२ वि० तदनुसार १० अप्रैल १८७५ ई० को बम्बई में आर्यसमाज की स्थापना, करने के पश्चात् वे पूना गये। वहाँ न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडे तथा अन्य महाराष्ट्रीय भक्तों के आग्रह पर उन्होंने बुधवार पैठ के भिड़े के बाड़े में एक व्याख्यान-माला प्रस्तुत की। इस व्याख्यानक्रम की अन्तिम वक्तृता ४ अगस्त १८७५ को हुई जिसमें श्री महाराज ने अपने जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया। कालान्तर में उपदेशमञ्जरी या पूना प्रवचन के नाम से जब स्वामी जी के ये १५ भाषण मराठी से हिन्दी भाषा में अनूदित होकर प्रकाशित हुये तो काशी शास्त्रार्थ (१६ नवम्बर १८६९ ई०) तक का प्रामाणिक जीवन-वृत्त स्वयं स्वामी जी के श्रीमुख से कथन किया हुआ ही, संसार को उपलब्ध हो गया।

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  • Title : जन्म-चरित्र (स्वामी दयानन्द सरस्वती)


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    Series Title : दयानन्द ग्रन्थमाला


    Language : Hindi


    Category :


    Subject : आत्मकथा


    Author 1 : स्वामी दयानन्द सरस्वती


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    Translator : N/A


    Editor : N/A


    Commentator : N/A


    Publisher : Vedic Pustakalay


    Edition : 4th


    Publish Year : 2009


    Publish City : Ajmer


    ISBN # : N/A


    http://www.vediclibrary.in/book/janma-charitra-swami-dayanand-sarswati

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