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संस्कृत-वाक्य-प्रबोधः

Sanskrit-vakya-prabodhah

By : Swami Dayanand Saraswati In : Hindi

मैंने इस "संस्कृतवाक्यप्रबोध" पुस्तक को बनाना अवश्य इसलिये समझा है कि शिक्षा को पढ़ के कुछ-कुछ संस्कृत भाषण का आना विद्यार्थियों को उत्साह का कारण है। जब वे व्याकरण के सन्धिविषयादि पुस्तकों को पढ़ लेंगे, तब तो उनको स्वत: ही संस्कृत बोलने का बोध हो जायगा, परन्तु यह जो संस्कृत बोलने का अभ्यास प्रथम किया जाता है, वह भी आगे-आगे संस्कृत पढ़ने में बहुत सहाय करेगा। जो कोई व्याकरणादि ग्रन्थ पढ़े विना भी संस्कृत बोलने में उत्साह करते हैं, वे भी इसको पढ़के व्यवहारसम्बन्धी संस्कृत भाषा को बोल और दूसरे का सुनके भी कुछ-कुछ समझ सकेंगे। जब बाल्यावस्था से संस्कृत बोलने का अभ्यास होगा तो उसको आगे-आगे संस्कृत बोलने का अभ्यास अधिक अधिक ही होता जायगा। और जब बालक भी आपस में संस्कृत भाषण करेंगे तो उनको देख कर जवान और वृद्ध मनुष्य भी संस्कृत बोलने में रुचि अवश्य करेंगे। जहां कहीं संस्कृत के नहीं जानने वाले मनुष्यों के सामने दूसरे को अपना गुप्त अभिप्राय समझाना चाहें तो वहां भी संस्कृत भाषण काम आता है।

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  • Title : संस्कृत-वाक्य-प्रबोधः


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    Series Title : दयानन्द ग्रन्थमाला


    Language : Hindi


    Category :


    Subject : संस्कृत शिक्षण


    Author 1 : स्वामी दयानन्द सरस्वती


    Author 2 : N/A


    Translator : N/A


    Editor : N/A


    Commentator : N/A


    Publisher : Vedic Pustakalay


    Edition : 4th


    Publish Year : 2016


    Publish City : Ajmer


    ISBN # : N/A


    http://www.vediclibrary.in/book/sanskrit-vakya-prabodhah

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