• Date of Birth : N/A - N/A - 1867
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P. Rajaram Shastri

पं. राजाराम शास्त्री

लाहौर के विख्यात शिक्षण संस्थान डी. ए. वी. कॉलेज में वर्षों तक संस्कृत के प्रवक्ता रहे तथा विभिन्न शास्त्रों के व्याख्याकार पं. राजाराम का जन्म 1867 में पंजाब के जिला गुजरांवाला के एक ग्राम में हुआ था। सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन ने इनकी रुचि आर्यसमाज की शिक्षाओं की ओर जगाई। साथ ही इनमें संस्कृत पढ़ने का विचार उत्पन्न हुआ। काव्य, व्याकरण तथा न्याय शास्त्र का अध्ययन करने के पश्चात् आपने महाभाष्य का अध्ययन जम्मू जाकर किया। 1892 में महात्मा हंसराज ने इन्हें डी. ए. वी. स्कूल लाहौर में संस्कृत का अध्यापक नियुक्त किया। दो साल बाद 1894 में इन्हें लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज में संस्कृत के प्राध्यापक पद पर नियुक्ति मिल गई। 1899 में उच्च स्तरीय संस्कृत के शास्त्रीय अध्ययन के लिए ये काशी गए और वहां रहकर मीमांसा तथा यज्ञ प्रक्रिया का विस्तृत अध्ययन किया। लाहौर लौट आने पर कॉलेज कमेटी ने इन्हें वेद तथा आर्ष ग्रंथों के भाषांतर करने का कार्य सौंपा। 1904 में इन्होंने आहिताग्नि राय शिवनाथ के सहयोग से आर्ष ग्रंथावली नामक मासिक पत्र निकाला जिसमें इनके किए विभिन्न शास्त्रों के भाष्य छपते थे। शास्त्रीजी ने विपुल मात्रा में लेखन कार्य किया है। इनके वेद विषयक लेखन का विवरण इस प्रकार है

अथर्ववेद भाष्य - यह भाष्य विषय निर्देश, स्वर सहित मंत्र पाठ, पुनः शब्दार्थ, तथा छन्द, ऋषि और विनियोग के निर्देश सहित अनेक टिप्पणियों से युक्त है। चार भागों में 1931 में प्रकाशित यह अथर्व भाष्य मुख्यतः सायण तथा पाश्चात्य वेदज्ञों की शैली का अनुसरण करता है।

वेद व्याख्या विषयक अन्य ग्रन्थ - वेदोपदेश (2 भाग), स्वाध्याय यज्ञ, शताब्दी शतक - ईश्वर महिमापरक 100 वेद मंत्रों की व्याख्या (1925), उपदेश कुसुमांजलि (3 भागों में), वेदप्रकाश ( अथर्ववेदीय पृथ्वी सूक्त की व्याख्या), वेद शिक्षक, वेद प्रवेश आदि लघु ग्रन्थ।

वेदाध्ययन में सहायक ग्रंथ वेद भाष्य भूमिका (1928), यास्कीय निरुक्त की टीका, कौत्सव्य निघण्टु, अथर्ववेद का निघण्टु, वसिष्ठ धर्म सूत्र तथा पारस्कर गृह्य सूत्र का संपादन, सामवेदीय आर्ष क्षुद्र सूत्रम् तथा औशनस धनुर्वेद संकलन।

इस विपुल साहित्य लेखन से पं. राजाराम की प्रचण्ड मेधा तथा उनका विस्तृत अध्ययन व्यक्त होता है। ग्यारह उपनिषदों की टीका लिखने के अतिरिक्त उन्होंने उपनिषदों की भूमिका तथा उपनिषदों की शिक्षा नामक ग्रंथ लिखकर उपनिषदों के अध्यात्मवाद का मार्मिक विवेचन किया था।

लाहौर के विख्यात शिक्षण संस्थान डी. ए. वी. कॉलेज में वर्षों तक संस्कृत के प्रवक्ता रहे तथा विभिन्न शास्त्रों के व्याख्याकार पं. राजाराम का जन्म 1867 में पंजाब के जिला गुजरांवाला के एक ग्राम में हुआ था। सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन ने इनकी रुचि आर्यसमाज की शिक्षाओं की ओर जगाई। साथ ही इनमें संस्कृत पढ़ने का विचार उत्पन्न हुआ। काव्य, व्याकरण तथा न्याय शास्त्र का अध्ययन करने के पश्चात् आपने महाभाष्य का अध्ययन जम्मू जाकर किया। 1892 में महात्मा हंसराज ने इन्हें डी. ए. वी. स्कूल लाहौर में संस्कृत का अध्यापक नियुक्त किया। दो साल बाद 1894 में इन्हें लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज में संस्कृत के प्राध्यापक पद पर नियुक्ति मिल गई। 1899 में उच्च स्तरीय संस्कृत के शास्त्रीय अध्ययन के लिए ये काशी गए और वहां रहकर मीमांसा तथा यज्ञ प्रक्रिया का विस्तृत अध्ययन किया। लाहौर लौट आने पर कॉलेज कमेटी ने इन्हें वेद तथा आर्ष ग्रंथों के भाषांतर करने का कार्य सौंपा। 1904 में इन्होंने आहिताग्नि राय शिवनाथ के सहयोग से आर्ष ग्रंथावली नामक मासिक पत्र निकाला जिसमें इनके किए विभिन्न शास्त्रों के भाष्य छपते थे। शास्त्रीजी ने विपुल मात्रा में लेखन कार्य किया है। इनके वेद विषयक लेखन का विवरण इस प्रकार है

अथर्ववेद भाष्य - यह भाष्य विषय निर्देश, स्वर सहित मंत्र पाठ, पुनः शब्दार्थ, तथा छन्द, ऋषि और विनियोग के निर्देश सहित अनेक टिप्पणियों से युक्त है। चार भागों में 1931 में प्रकाशित यह अथर्व भाष्य मुख्यतः सायण तथा पाश्चात्य वेदज्ञों की शैली का अनुसरण करता है।

वेद व्याख्या विषयक अन्य ग्रन्थ - वेदोपदेश (2 भाग), स्वाध्याय यज्ञ, शताब्दी शतक - ईश्वर महिमापरक 100 वेद मंत्रों की व्याख्या (1925), उपदेश कुसुमांजलि (3 भागों में), वेदप्रकाश ( अथर्ववेदीय पृथ्वी सूक्त की व्याख्या), वेद शिक्षक, वेद प्रवेश आदि लघु ग्रन्थ।

वेदाध्ययन में सहायक ग्रंथ वेद भाष्य भूमिका (1928), यास्कीय निरुक्त की टीका, कौत्सव्य निघण्टु, अथर्ववेद का निघण्टु, वसिष्ठ धर्म सूत्र तथा पारस्कर गृह्य सूत्र का संपादन, सामवेदीय आर्ष क्षुद्र सूत्रम् तथा औशनस धनुर्वेद संकलन।

इस विपुल साहित्य लेखन से पं. राजाराम की प्रचण्ड मेधा तथा उनका विस्तृत अध्ययन व्यक्त होता है। ग्यारह उपनिषदों की टीका लिखने के अतिरिक्त उन्होंने उपनिषदों की भूमिका तथा उपनिषदों की शिक्षा नामक ग्रंथ लिखकर उपनिषदों के अध्यात्मवाद का मार्मिक विवेचन किया था।

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